Pages

Friday, August 31, 2012

यहाँ महारानी सो रही है


दरवाज़े पर एक जाती हुई आवाज़
लटक रही है   एक भीड़ इन्तज़ार में है
अभी शीघ्र ही मध्यरात्रि के विस्फोट
शुरू होंगे जो पटरी पर बैठे लोगों के
लिये एक परोपकारी आकाश के वरदान
की घोषणा करेंगे

एक साम्राज्य के उत्थान और पतन
के इतिहास को मैं पीढि़यों के अपसरण
को सन्दर्भ में कोई लेबल नहीं दूँगा
बदलता हुआ भूगोल
अब भस्मियों की देखभाल स्वयं कर लेगा
एक रद्दी बटोरने वाला लड़का आपको
पूरी दास्तान सुना देगा

खिसकता हुआ चाँद अब बड़ा किफायती
हो गया है जो सिर्फ दागी सपनों पर चाँदनी
बिछा रहा है जैसे हमारी ज़मीन के ज़ख् मदसंतहमक (enlarge)  हों
नफरत का समुद्र सामने नंगा पसरा है
और पुराने कंकालों को समेट रहा है   मैं नहीं जानता
कि मैं सर्वाहारी कैसे बन सकता हूँ

रजि़या बेगम महारानी के मज़ार को देख कर जिसने मध्ययुगी भारत पर अकेली औरत ने राज किया था

सती वर्मा

No comments:

Post a Comment