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Sunday, September 30, 2012

मुट्ठी भर


उधर पूरी शांति थी
बलि के बकरों के बिना
एक एकाधिपत्य की बात थी जो उन्माद के चुम्बन
की प्रस्तावना थी    सामथ्‍​र्य और दुर्बलता के बीच
विवेक रहता है  अब पथ बिना पुष्पों
के लिंग को पहिचान लेगा

बाड़े में इस अहाते के दूसरी तरफ
दीवार थी  जहाँ बाघ एक नन्ही लड़की की
अधखायी टाँग छोड़ गया था  एक
नग्न मॉडल ने किसी पवित्रता को मानने से इनकार
कर दिया था  और ऊँची आवाज़ में उड़ते
हुए कीटों की बात करने लगी थी

यह बिल्कुल बेकार थी
सच्चाई की विडम्बना    हर आदमी
खनन में अपना हिस्सा  माँग रहा था


सतीश वर्मा

Saturday, September 29, 2012

जकड़न


नितान्त रूप से थकते हुए
आज मैं अपनी पताका                                
को फहरा दूँगा

जब चाँद झील में गिरा था
तो अँधेरे में वक्तव्यों की अर्थछटाओं का
हरा ज़ख्म बन गया था

विक्षिप्त जपाकुसुम की शैली
का प्रतिकार करते हुए मैं
तितलियों से बातचीत कर रहा था

मेरे आँगन में फिर वर्षा
हुई थी   संगमरमरी पत्थरों
और मेरी आँखों को गीला करते हुए

मेरे सिर से आज छत को उठा दो
मैं आज प्रशीतित आँसुओं
से मुलाकात करूँगा

खाली खाली आँखों में एक विशाल
अपराधबोध झलकने लगा है
मैंने मृत्यु के विलासपूर्ण वक्ष को अंगीकार क्यों
नहीं कर लिया था

सतीश वर्मा

Friday, September 28, 2012

· शीलॅ-नॅ-गीग


उस जन्मदाता कुण्ड का इन्तज़ार
करते हुए जो जंजीरों में जकड़े
एक स्वप्न अनुवाधक को निक्षेपित करेगा

चाँद के डँक मारने पर सूर्य
पर अब पकड़ ढीली पड़ती जा रही थी
ग्रहिकाओं ने फिर हमले शुरू कर दिये थे

भगोडा बाघ अब स्वजातिभक्षी
बन गया था, एक नयी पलायन
विधि का अभ्यास करते हुए
शिकार के बाद धुँए का सर्पिलाकार
बादल उठता है  तुम अपनी नज़रें
पीछे फेंकते हो

कोई ट्यूलिपों की पीठ में एक चाकू
घोंपने वाला है   मृत्यु के रँगों
को अपने घर ले जाओ

आज उत्सव, अनुष्ठान शुरू होंगे
एक बबूले की सन्तानें अब
सड़क पर निकल आई हैं

सतीश वर्मा

·ब्रिटेन और आयरलैन्ड में मिलने वाली मध्युगीन एक नग्न नारी की मूर्ति जिसके हाथ जननाँगों को उद्भासित करते हुए हैं और टाँगें खुली चौड़ी दिखाई देती हैं

Thursday, September 27, 2012

फैसला


बिन्दु यह था कि उसने बन्धक
को ही निगल लिया था
धरती जैसे फट गई थी
अन्तिम शीतनिद्रा
शुरू हो गई थी


सिर्फ एक ही सच्चाई से बचते हुए
फैासले की घड़ी में अब
खूनी तथ्यों की माँग रखी गई थी
अगर मैं अपनी दास्तान बताता हूँ
तो तुम मुझे नष्ट करने पर उतारू हो जाते

कोई रुदन नहीं था   हरे राम हरे राम
कहते हुए निरीह प्राणियों को विकलांग
बनाने का क्रम शुरू हो गया था
मैं कुछ नहीं कर पाने की अवस्था में
उबल रहा था

अपनी झूठी गढ़ी विजय पताका लेकर
तुम एक घर का ताला तोड़ कर प्रविष्ट
होते हो और तुम्हें ज्ञान होता है कि स्वर्णिम
अँगीठी -पट से कोई रजत के भगवान
को उठा कर ले गया है

तुम एक ऊँचे वृक्ष पर चढ़ते हुए
अन्तिम छोर पर जाकर स्पष्ट नीलिमा
में अदृश्य हो जाते हो

सतीश वर्मा