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Wednesday, August 15, 2012

काली काव्यात्मकता


रक्तिम माँस की संगमरमरी ढलानों
के साथ तिरते हुए
एक काला राजहंस बहुत व्यथित हो रहा था
बन्धुआदास और
नारीद्वेश को लेकर

भविष्य की शावक आँखों से
निकलते हुए मोतियों की इन्तज़ार में
रुण्डित कोखों का सफेद जामा
पहिन कर प्रतात्माऐं कतार में खड़ी थी

तुम उस नगर की सच्चाई पर
विश्वास करोगे जो एक सफेद चाँद को
देखने के लिये रात में
घरों की छत पर नहीं आता?

विपरीत इसके, तुम्हें अबूझे गुनाहों
के लिये दन्डित किया जा रहा था
अब तुम अपना स्मृति-लेख
स्वयं लिखोगे इससे पहिले कि तुम्हारी पीठ
पर गोली मार दी जाये

सतीश वर्मा

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