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Wednesday, August 29, 2012

दुर्घटनाएँ


मैं दलदल में खड़ा हूँ
लड़ाई जारी

धूल बड़ी कच्ची हैं
नाखुनों के पोरों में घुस रही है
उन्हें नीला करते हुए
आज कब्ज़ों से दूर कौन
भाग रहा है?

जननांगी मस्से फैलते जा रहे है
अब ठोस प्रमाण वाक्छजल का मुखौटा
पहिन लेंगे   गाड़ी पटरी
से उतर गयी है   ज़ख्मी हुई
है  केवल ज़मीन

सपने ज़ख्मों को नहीं सी सकते
तुम वहाँ जाना चाहते हो जहाँ
बीहड़ है  टूटे हुए दाँत मिलेगे
और आँखें जहाँ चीटियों ने अपना
घर बना लिया है

सतीश वर्मा

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