मैं
दलदल
में
खड़ा
हूँ
लड़ाई
जारी
धूल
बड़ी
कच्ची
हैं
नाखुनों
के
पोरों
में
घुस
रही
है
उन्हें
नीला
करते
हुए
आज
कब्ज़ों
से
दूर
कौन
भाग
रहा
है?
जननांगी
मस्से
फैलते
जा
रहे
है
अब
ठोस
प्रमाण
वाक्छजल
का
मुखौटा
पहिन
लेंगे गाड़ी पटरी
से
उतर
गयी
है ज़ख्मी हुई
है केवल ज़मीन
सपने
ज़ख्मों
को
नहीं
सी
सकते
तुम
वहाँ
जाना
चाहते
हो
जहाँ
बीहड़
है टूटे हुए दाँत
मिलेगे
और
आँखें
जहाँ
चीटियों
ने
अपना
घर
बना
लिया
है
सतीश वर्मा
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