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Monday, August 13, 2012

बाहर आते हुए


आधी रात
लक्ष्य साधने का उत्सव मनाते हुए
अपने आप को मिटा कर

तुम्हारी कक्षीय
से आती हुई सुबह की गन्ध?
मैं अपनी पथरायी आँखों पर
विश्वास  नहीं कर पा रहा था

एक गीली रात
सफेद चाँद को उबलते हुए आकाश
में फुसला रही थी
विषय -आसक्ति
अग्नि में कूदने से पूर्व
मैं तुम्हारा नाम
किनारे पर छोड़ दूगाँ

उन आशिकों का राज़ क्या था
जो गहरे जंगल में अदृश्य होने से पूर्व
अपने कपड़े लत्ते छोड़ गये थे

सतीश वर्मा

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