छाया
और
चाँद
में
अन्योन्य -क्रिया
चल
रही
थी
लपटों
में
घेरों
में
थी
एक
मस्तिष्क
को
घेरती
हुई
विषाक्तता
एक
भयकंर
विस्फोट
तुम्हारे
व्यक्तित्व
का
संतुलन
बिगाड़
चुका
था
अब
तुम
किताबों
के
बीच
में
अपनी
पहिचान को नहीं
समझ
पा
रहे
थे
सन्तप्तता
अब
शुरू
हो
जानी
चाहिये
तुम्हें
मंदिर
की
छत
से
राख
के
ढेर
पर
उछाल
दिया
गया
था
अब
तुम
अन्तिम
गणना
के
लिये
अपनी
कब्र
पर
खड़े
हो
गये
हो
एक
हरे
ताल
में
तुम्हारी
आवाज
फिर
डूब
जायेगी
यह
अनन्तकाल
तक
स्वरहीनता
की
प्रस्तावना
होगी एक
पक्षी
का
गीत
अब
गहराइयों
से
अप्राप्य
हो
जायेगा
सतीश वर्मा
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