तुम
डर
क्यों
रहे
थे
अज्ञात
से ?
मैं
सम्पूर्ण
सत्य
को
असंगत
संज्ञाओं
की
निकटता
से
दूर
ले
जाकर
माँज
रहा
हूँ
एक
स्वर्णिम
त्रिभुज
के
निष्ठुर
व्यवहार
से
मर्माहत
देह
को
नये
शब्द
सन्धियुक्त
कर
देंगे
एक
आगमन
दु्रत
गति
को
कोई
दिशा
निर्देश
नहीं
देता
बन्द
आकाश
का
मोहपाश
तुम्हें
बन्दी
बना
देता
है
अब
तुम
एक
अनस्तित्व
और
आकाशहीनता
की
यात्रा
शुरू
कर
देते
हो
क्या
शून्यता
के
बाद
भी
कुछ
रहता
है ?
मैं
बहुत
दूर
तक
आ
गया
हूँ ,
अब
संख्याओं
की
ओर
नहीं
लौटूँगा
सतीश वर्मा
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