एक
हज़ार
चन्द्रमाओं
की
रात
और
मैं
अँधेरे
में
नृत्य
कर
रहा
हूँ
वक्त
याद
नहीं
मेरी
आधी
पाण्डुलिपि
तुम्हारे
पास
कतरनों
के
नीचे
दबी
रह
गई
थी
अब
मुझे
ऊँचे
नीड़
में
कोई
विरामचिन्ह
नहीं
मिल
रहे
जब
सूर्य
न
उग
पाये
तो
अज्ञात
चोटियों
की
नीली
गहराइयों
में
मुझे
जगा
देना
सम्बूल
पर
रखे
हुए
पत्थर
खुश्बुओं
को
दबा
नहीं
पायेंगे
मैं
एक
पीतरक्त
फूल
और
ले
आऊँगा
सतीश वर्मा
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