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Wednesday, August 22, 2012

निर्जन बरफ़


एक हज़ार चन्द्रमाओं की रात
और मैं अँधेरे में
नृत्य कर रहा हूँ

वक्त याद नहीं
मेरी आधी पाण्डुलिपि तुम्हारे पास
कतरनों के नीचे दबी रह गई थी

अब मुझे ऊँचे नीड़ में
कोई विरामचिन्ह नहीं
मिल रहे

जब सूर्य उग पाये
तो अज्ञात चोटियों की
नीली गहराइयों में मुझे जगा देना

सम्बूल पर रखे हुए पत्थर
खुश्बुओं को दबा नहीं पायेंगे
मैं एक पीतरक्त फूल और ले आऊँगा


सतीश वर्मा 

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