आओ, जरा
अनुबन्धन
की
बात
करें
मैं
सुलगती
हुई
सरहदों
को
लैंगिक
दिग्विन्यास
के
नाम
पर
धकेलना
नहीं
चाहता
हूँ
तितलियाँ
और
मधुमक्खियाँ
अदृश्य
हो
रही
हैं एक पेट्रीडिश,
एक
परखनली
और
लाल
रोशनियों
के
पार एक
प्रहार
एक
अखन्डित
वायदा
अब
टुकड़ों
में
बिखर
गया
है
कुछ
कम
भोगने
की
स्वीकारोक्ति
अब
घर
वापिस
लौटने
की
चर्चा
से
दूर
चली
गई
है अब रेगिस्तान
फिर
रुष्ट
नागफनियों
में
बौरा
गया
है
सतीश वर्मा
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