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Saturday, September 1, 2012

काली नदी


सितारों को शर्मिन्दा करने के लिये एक
महाचन्द्र बड़ी आन बान शान से ऊपर रहा था

रात को बटरकॅप के पीले फूलों ने युद्ध छेड़ दिया था
आडम्बरहीन होकर आना, तुम तुम रह कर, वो बन कर नहीं


झील पर, अपने आप से अजनबी बनते हुए
आज एक अन्तहीन रात्रिकालीन स्वीकारोक्ति होगी

तुम्हें मालूम है कि विष-वृक्ष तभी पुष्पित होता है
जब एक सुनहला गरुड़ एक गोता मारने के लिये ऊपर उठता है

नीचे जाती हुई शवयात्राओं की एक पंक्ति पर हमला करने के लिये


सतीश वर्मा

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