नितान्त
रूप
से
थकते
हुए
आज
मैं
अपनी
पताका
को
फहरा
दूँगा
जब
चाँद
झील
में
गिरा
था
तो
अँधेरे
में
वक्तव्यों
की
अर्थछटाओं
का
हरा
ज़ख्म
बन
गया
था
विक्षिप्त
जपाकुसुम
की
शैली
का
प्रतिकार
करते
हुए
मैं
तितलियों
से
बातचीत
कर
रहा
था
मेरे
आँगन
में
फिर
वर्षा
हुई
थी संगमरमरी पत्थरों
और
मेरी
आँखों
को
गीला
करते
हुए
मेरे
सिर
से
आज
छत
को
उठा
दो
मैं
आज
प्रशीतित
आँसुओं
से
मुलाकात
करूँगा
खाली
खाली
आँखों
में
एक
विशाल
अपराधबोध
झलकने
लगा
है
मैंने
मृत्यु
के
विलासपूर्ण
वक्ष
को
अंगीकार
क्यों
नहीं
कर
लिया
था
सतीश वर्मा
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