तर-बतर
वक्ष
के
ऐंगिक
अन्त
के
बाद
मैं
आँखों
के
नन्हें
द्वीपों
को
अलौकिक
जल
में
छोड़
देता
हूँ
हमारे
पूर्वज
छत
के
उद्यान
में
गुलाबों
के
बीच
चबूतरे
पर
रहने
के
लिये
आज
वापिस
आ
रहे
है
मैं
आज
फूलों
से
बात
कर
रहा
हूँ
युद्ध
का
अन्त
करने
के
लिये, रोशनी
पहाडि़यों
के
पीछे
इन्तज़ार
कर
रही
है
और
परिन्दे
उड़ान
भरने
को
तैयार
गये
हैं
तुम
क्या
माँ
धरती
से या
गरजते
हुए
आकाश
से
डर
रहे
थे ?
सारी
लाशें
पंक्तिबद्ध
खड़ी
हो
गई
हैं
एक
प्रबल
कोप
का
स्वागत
करने
के
लिये !
सतीश वर्मा
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