जब रात ठन्डी थी
नभ चाँद को पी गया
सड़क किनारे एक अकेला वृक्ष
एक शिकार की खोज में खोजते भेड़िये का इन्तज़ार कर रहा है
जो वैद्युत त्वचा को चुरा ले
जैसे स्तनों पर भागती हुई नसें
नदिया बह रही थी
चढ़ते हुए उन्माद को टोहका मारते हुए, विदालित करते हुए
फिर भी प्यास नहीं डूबती
जैसे टारपीडो से पिटी हुई पनडुब्बी
एक बूँद में चाँद के लाखों चेहरे
एक चाँद में एक बूद भी नहीं
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