उस अनकहे दर्द का क्या होगा,
और अपमान का निमित्त
और छोटे देवताओं की हीनता?
आओ कुछ कर दें
और अन्दरूनी ज़िन्दगी को बाहर निकाल फेंके,
इससे पहिले कि हम धड़ाम से गिर जायें
सिर पर गोली लगने के बाद
संख्याएं ठेस पहुँचाती हैं
वो कँगूरे और कमीज़े
जैसे जैसे हवा बहती है
मौन अब होठों की ओर से बोलेगा
ज़ख्मी शब्दों के लिये बोलेगा,
टेढ़ी अगुलियाँ एक दिन
सच को ऊपर उठा लेंगी
No comments:
Post a Comment