Pages

Thursday, October 21, 2010

उदासी के साथ

गुरदों की आग
टोकरी को जला रही थी
हरे अंगूठों की गोपनीयता
इसमें आत्मीय रूप से शामिल थी

आओ इस मोमबत्तियों के अभियान से
कलियों की खातिर भागीदारी करें
जो बूढ़े पक्षियों के लिये
खिल नहीं पाईं

उस शहीद का यह स्मृति-लेख मुझे
दुबारा पढ़ कर सुनाओ जिसने बहते
हुए दरिया के दर्द के कारण
किसी यश की कामना नहीं की

उस एकाकी बन्दे के उन्माद की हद
न रही जब गुलाब की क्यारी पर
एक बाँध ने सड़ी हुई लकड़ियाँ
उगल दीं

सतीश वर्मा

No comments:

Post a Comment