गुरदों की आग
टोकरी को जला रही थी
हरे अंगूठों की गोपनीयता
इसमें आत्मीय रूप से शामिल थी
आओ इस मोमबत्तियों के अभियान से
कलियों की खातिर भागीदारी करें
जो बूढ़े पक्षियों के लिये
खिल नहीं पाईं
उस शहीद का यह स्मृति-लेख मुझे
दुबारा पढ़ कर सुनाओ जिसने बहते
हुए दरिया के दर्द के कारण
किसी यश की कामना नहीं की
उस एकाकी बन्दे के उन्माद की हद
न रही जब गुलाब की क्यारी पर
एक बाँध ने सड़ी हुई लकड़ियाँ
उगल दीं
सतीश वर्मा
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