Pages

Thursday, October 21, 2010

*वापसी

मैं भूल गया था, क्या वो मैं था
उस शरीर में, धूल में लिपटे हुए,
अभी भी उष्मित, चोटिल, जला हुआ, एक पागल महत्वोन्मादी
जिसने गृहयुद्ध शुरू किया था, आत्मघाती बमवर्षकों का जन्मदाता,
छोटी छोटी कुमारियाँ मृत्यु को सूँघते हुए

बन्दूकों की छाया में हुई यह यात्रा, हज़ारों बेगुनाहों
को बेदखल करते हुए, क्या यह जीवन की स्थूल, खून से सनी
पगडन्डी से मंजिल तक पहुँचेगी? एक एक करके कदम
पर राजवंश टूट रहा था और हिंसा का घातक रोग
हड्डियों को चबा गया था

उस अवतार की गोल खूनी आँखे मौज की सीमाओं
को तोड़कर चमड़ी से बाहर आ गई थीं
आज उसके बंकर पर गोलाबारी हो रही थी

*वेलुपिल्लै प्रभाकरन लिट्टे नेता की मृत्यु पर
सतीश वर्मा

No comments:

Post a Comment