पुरुष, नारी और लैंगिकता के बीच में
एक लिंग झपट्टा मार कर कूद पड़ता है
शब्द का एकस्व प्राप्त करते हुए जैसा ही है
जन्म के द्वार पर, अभिनय करते हुए
जैसे यह एक मूलभूत विचार का चुम्बन हो
सामान्यता की हमेशा कोई मंशा बनी रहती है
गीन पँखों वाली जैसे एक उत्तेजक नृत्य
जो मुहब्बत का इज़हार करने के लिये शुरू हो जाता है
काला या सफेद कोई जना एक अपांग लड़की
की त्वचा पर एक खतरनाक क्षत-विक्षत चिन्ह
उकेर रहा है यह क्या था, एक देश की
पेशियों का दर्द जैसे सफेद किताब में लिखी
हुई होंठरहित महाकाव्य की कथा जो पूरी नहीं हो सकती
मैं चाहता था कि एक नहीं आने वाले कल पर विश्वास करूँ
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