टूटे हुए हाथों से
मैं एक चिता जलाता हूँ
छोटे छोटे शून्यों की
जिनके नक्षत्र गुलाबी थे
एक लम्बी रात में चन्द्रमाँ मुझे सफेद रंगों में विरंजित कर गया
झुलसाते हुए सूर्य
से एक निजात पाने की
जरूरत थी एक रूपक
का काला जादू खोलते हुए
कविताऐं जलते हुए घर को सम्भाल लेंगी
भविष्यवाणियाँ और मृत्यु
मैं दर्द के पहाड़ से
अपकर्म का अन्त
देखना चाहूँगा
धुएं में बर्फ काँपती रह जायेगी
सतीश वर्मा
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