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Monday, August 23, 2010

आत्मनिरीक्षण

अन्दर से धँस जाने के बाद कशाघात का स्पन्दित
दर्द, एक गोल्डफिश शुक्राणुओं में लिपटी हुई,
खुलती हुई एक कत्ल की नहर काले डैनों के नीचे शर्म के पार
झुकते हुए गुलाबों को इकट्ठा करती हुई

हम अपनी अर्धपारदर्शिता में खुले दिल से टांगरहित
लड़कों को हथियार बाँट रहे थे ताकि वो स्मृतियों
के गलियारे से एक नाम कन्धों पर उठाकर ले जा सकें
इतिहास शताब्दियों के सन्ताप को फिर दोहराता है

एक यश का नमक फिर जागता है और वफ़ादारों
की आँख का अंधेरा खींच कर बाहर ले आता है
सज़ाओं और नग्न फरिश्तों के बीच एक लकवा
पृथ्वी का गर्भ खाली कर देता है

मैं यह नहीं जानना चाहता कि कृपा-निवासों में हिलते
हुए रोबोटों का क्या होगा जो प्यार की दीवारों में बड़े
बड़े छेद कर रहे थे? क्या लाल बारिश की बौछारें
पर्वतों पर गिरेंगी, सूखे ने अब तक सब कुछ सोख लिया है

सतीश वर्मा

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