एक पवित्र खोपड़ी के सामने एक पक्षयुक्त अवतार
हत्याकान्ड शुरू करता है गुलाबी आच्छदन के नीचे
पसलियाँ गायब थीं आँख के ऊपर आँख कटी हुई
नज़र पैदा कर रही थी ताकि बिना नकाब के ख्यालों में
जिया जा सके और जहाँ सत्य निवास करता है वहाँ
हत्या की जा सके एक भटका हुआ प्रेमी हरी
छातियों पर मँडरा रहा था, उसके दिल में छिपा हुआ दर्द था
झील के सारे पक्षियों ने सूर्य की रोशनी को अपने बुझे
हुए घरौंदे के लिये समर्पित कर दिया था और दूर उड़
गये थे बीते हुए कल का दर्द अब चाँद की दुल्हन
को सतायेगा जिसने कीचड़ में अपने शिशु को
हार पहिने पुजारी भेड़ियों की देखरेख में छोड़
दिया था मैं ही आँसू था और में ही तलमार्ग
त्वचा रंग बदल रही थी शर्म और दोष को छिपाने
के लिये, अभिशिखर की एक झलक पाने के लिये
सतीश वर्मा
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