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Saturday, August 21, 2010

मस्तिष्क-मृत्यु

शब्दों के बीच में कुछ और पढ़ने के बाद, मेरा टूटा
हुआ सपना, जिसे उसके दाँतों से पहिचाना गया था, किसी
अज्ञात डर का पीछा करते हुए काटने लगता है, नदी लाल

            होती जा रही है, विश्वासघात के नाम पर एक धक्का खाये
            प्रेमी का सिर कलम करने के बाद एक पुत्र कैद होने

के लिये माँ की खातिर एक अनदेखे सन्ताप के पृथ्वी समय में
मूक, सन्धिकर्त्ताओं के बीच उबलता
हुआ प्रतिशोध, बीमार दिल, विकराल

            कौटम्बिक व्यभिचार, एक काँच के मर्तबान में
            रखे हुए नमूने जिन्हें मृत्यु की ओर खिसकते

हुए वृद्ध लोग गिरे हुए नायकों के रक्त की
परछाई में देख सकें, अजन्मी शताब्दियों
            की मधुरात्रि निष्फल इन्तज़ार करती हुई

सतीश वर्मा

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