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Wednesday, August 18, 2010

बिम्ब

तरल क्रोध को झुकाते हुए, चींटियों के महल
से प्राकृतिक चयन तक हिँसा की मैथुनिक ऊर्जस्विता
नीचे उतर रही थी

आक्रामक, निर्दय टेस्टोस्टेरॉन गीली रानों का पीछा
कर रहे थे  रात पसीने से तरबतर  चौर्योन्माद बढ़ रहा था

बधियाकरण या हीलियम भरे हुए मुखौटे जो आत्महत्या
के लिये उकसा रहे थे वास्तव में क्षत-विक्षत जीन की उत्पत्ति थे

सुजननिकी के लिये उठते हुए कई प्रश्न ?  नफरत और
प्रतिशोध की भावना एक मृत शरीर को टैंक पर लटका आई है

एक अपराध के लिये दूसरा अपराध  एक छोटा सा ताज, पंखिल
पराग भुरभुरी क्षेतिका पर बिखरा दिये गये थे  आकाशगंगा

मध्यरात्रि के सूरज से शर्मा गई थी   एक जाति की गढ़ी
हुई दृष्टि सामूहिक हत्याकाण्ड के कंकालों को खोद निकालती है
कट्टरपन्थी सच्चाई की कीमत बदलते जा रहे थे
प्रतिमाएं मन्दिर छोड़ने को तैयार नहीं थीं

सतीश वर्मा

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