Pages

Wednesday, August 18, 2010

रिक्त होना

गोलकों के पीछे छिपी विकृति में झुकाव आता है
दुर्बल सम्बद्धता को बिखरा देता है   एक पुराने,
वृक्ष के झुर्रीदार चेहरे पर  एक काली छाया मन्डराती है

मधुमक्खियाँ खाने वाले उड़ गये हैं
चमकीले दरवज़ों के चेहरों की मुस्कान
की उम्र का  पता काष्ट पर छपे हुए वार्षिक वलय
नहीं लगा पा रहे थे  उन्होंने देह की नग्न शहतीर के आगे

शिकायत रख दी थी  अनावृत मकडिंयाँ एक घातक
डिज़ाइन बना रही थीं जो अपरिवर्त्य कारकों की प्रविष्टि
की फिराक में थीं

विस्मरणशीलों पर आहिस्ता से एक अमर रात्रि
उतरती है  मैं पीड़ा की तह तक पहुँचना चाहता हूँ
और उत्सव मनाने के लिये विष निकाल कर लाना चाहता हूँ

स्वर्णिम शब्दों से निकलती हुई काली ड्रैगन फ्लाई
के पँखों पर छपे हुए आने वाले कल के वानरों के चेहरों
को उघाड़ना चाहता हूँ

सतीश वर्मा

No comments:

Post a Comment