तुम एक गोबर के भृंग के समान सुरंग
की रक्षा कर रहे थे मैं तुम्हें उस गेंद को लुढ़कने नहीं दूँगा
मेरे दाँत में उठता हुआ भयकंर दर्द तुम्हें क्यों जाना
था आपसी सद्भावना की रेचक मुक्ति के बाद?
दिल में एक पत्थर डैनों पर बर्फ
आज एक भयानक ध्वंस-अवतारण होगा
उसने अपने हाथों से मृत्यु वरण की गहरे पानी
में स्मृतियों को खेते हुए ठोस पीड़ा की
छत तक पहुँचने के पहिले जन्म से मिले अवसाद
को चाँद की दुल्हन मिली थी बिना माँस मज्जा के
नज़रों से दूर एक हाथ तुम्हारी आँखों तक पहुँचती रोशनी
को पकड़े हुए है तुम मृत्यु की मंझधार में मछलियों के साथ तैरोगे
सतीश वर्मा
*अंग्रेजी की प्रसिद्ध कवियित्री सिल्विया प्लाथ के पुत्र निंकोलस ह्यूग की अलास्का में 16 मार्च 2009 में आत्महत्या करने के बाद
No comments:
Post a Comment