Pages

Saturday, August 21, 2010

*अनावृत और पीड़ा भरा

अलग थलग रहने का खालीपन
डैनों को मुक्त करने की इच्छा,
मैं की परछाई बिना हाड़ माँस के
शब्दों के विशाल मौन को

चीरने फाड़ने की लालसा, द्वैत के समक्ष पैर भारी,
अलौतिक परन्तु समाधान और गहरे आक्रोश 
के बीच तनाव की प्रतिध्वनि, अंकुरित
होते बीजों की फन्तासी की लम्बी उड़ान
याददाश्त की ज़मीन पर आत्मत्याग,
तड़कते हुए रेगिस्तान के अन्तिम गीत पर
मूसलाधार वर्षा की वापिसी

एक तारे के रक्त रंजित सिके शरीर पर बिछी स्वर्णिम
पोशाक पर सर्वहारा पंजों का विवेक

*जेड गुडी की मृत्यु पर
सतीश वर्मा

No comments:

Post a Comment