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Thursday, August 19, 2010

मितव्ययिता

जीवन के बहते हुए यातायात में बैठे हुए
मैं अपने आप को आवाज़ दे रहा था
एक ऐसी परपीड़क बदनसीब खुशी में कि हमारे घर
मृत्यु के त्रिभुज मे विपत्तियाँ आ रही थीं,
एक शून्यवादी प्रवसन की दृष्टि से मुलाकात के लिये,
चर्मप्रसाधक हिँसा के विवाह पर, मितव्ययी मृदा
के विस्तार के लिये, चिन्ता को काल को साँचे में
डालने के लिये

क्योंकि बलात्कार के लिये बहुत सी लड़कियाँ मौजूद
थीं और भूख कैम्पों में जातियों को विभाजित
कर रही थी, बंकर में बैठकर डर से बचा जा सकता था

भूले हुए खर्चीले बच्चे, गिद्ध रोज़ ही मरने लगे थे
तुम्हें जाति बाहर कर दिया गया था, अन्धेरे में
नींद में चलने वाला जो हथेलियों की सीमओं
से टकरा रहा था

सतीश वर्मा

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