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Sunday, August 22, 2010

अजन्मा

ऐसे ही रहने दो, एक सुबह की प्रार्थना
फन्तासी में लिपटी हुई
आत्मा की अन्तवृत जाँच में विध्न डालते हुए
एक पागल मनःस्थिति को लुभाती है

सोते हुए ज्वालामुखी ने उत्सव मनाने का फैसला किया था
और सजावट प्रदर्शित कर दी थी
बिल्कुल बिना चमक वाले हाथ अब ध्वजा उठायेंगे
और अपने गुर्दे, आँखे तथा दिल का दान करने की अपील करेगें

जो एक टूटे हुए तारे की जीवन रक्षा करेंगे, यह
तारा एक किताब के नाम पर एक हाथीदन्त की गाड़ी
में एक रिक्त शव रोज भेजा करता था, एक
अलौकिक स्पर्श की नकल करते हुए ताकि वो
हत्याकान्ड का निस्तारक कहलाया जा सके

वो लोग ग्रीष्म की लपटों से क्यों खेल रहे हैं ?
कुछ पलों ने पाप किया था और अब शताब्दियाँ
कष्ट पायेंगी हरी पत्तियों पर एक कोयल
का खून हो गया था

सतीश वर्मा

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