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Thursday, August 19, 2010

*जवाब देने का वक्त

सचेत होने पर, मेरी तुम्हारे लिये जवाबदेही
के परिभाषित होने का पल आ गया है
पूर्ण विलीन होने के लिये सीखंचों के पीछे उम्रकैद या मृत्युदन्ड, क्योंकि

आहिस्ता आहिस्ता नीवों में पाप रिस गया था एक चौथाई
शताब्दी तक खिसकते हुए रेत के टीबों पर गुज़रता हुआ
एक कारवां और उसकी धुधली तस्वीर, यह तबाही एक आत्म-सन्तुष्ट

 ऩखलिस्तान में जाकर काली पड़ गयी थी,
जु़ल्म की शिकार हुई किशोरी वापिस अक्षतयोनि नहीं बन
पायेगी  मृतअन्धे अब विषाद मनाने वालों पर नज़र रखेंगे

मैं उस की जीभ पर असंख्य तारे छोड़ जाऊँगा और तुम
घर के कैदखाने में
उन रोती हुई दीवारों और भयभीत खिड़कियों को भूल जाओगे,
जहाँ रोज का भोजन सेक्स और बलात्कार होता था

हारे हुए चाँद की शक्ल नज़र आने के बाद
गुनाह और माफी नाम की अजीब परछाइयाँ अब नीले आकाश
पर उभर रही है

*जोसेफ फ्रिट्ज्ल पर 19 मार्च 2009 को हुए फैसले के सुनने के बाद
सतीश वर्मा

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