साथ साथ रह कर
मेरी कविताऐं मुझे उदास कर जाती हैं
तुम तो वक्त की पहिचान हो
मेरी देह रेत पर ज़ख्मों के निशान छोड़ जाती है
एक बार फिर मैं अपने टूटे फूटे घर गया था
चाँद के नीचे सोने के लिये
सिर्फ एक छोटी सी खिड़की से
मैं रात भर सितारों को देखता रहा
सोच विचार करने और संश्लेषित पिताओं
और किराये के गर्भाशयों की झील में कूदने के लिये
यह सन्तप्त आस्था अब तुम्हें उत्तरदायी मानती है
हे भगवान, विपर्यस्त क्रम में, तुम आदमी बन जाओ
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