हृदय के कपाटों तक ले जाकर देखो
नाक-नक़्शा वही है
धर्मसंघिनी हो या वेश्या
छोटे छोटे कदम, लम्बे हाथ
रस्सियों के रक्तद्वार की ओर चलते हैं
किताबों से काँटों को नोचने के लिये
आने वाले कल में देर थी
आज तो खून की होली होगी
उद्घोषों के मैदान में
आखिरी आलेख मेरा होगा
यह मोमबत्ती पूरी रात अलग अलग
रंगों में जलेगी
इस काँपती हुई भीड़ में
बाहर का आदमी कौन था?
एक बार हर आदमी अपनी नकाब उतार दे
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