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Friday, September 10, 2010

दस्ताने

आज मैं अपने आप में साबुत नहीं हूँ, शान्तमना;
एक उजड़े हुए भूदृश्य को स्तम्भित करने के लिये
पूरी रात एक रक्तिम चाँद मेरे चारों तरफ
मँडरा रहा था मैं विदाई के लिये तैयार नहीं था,
पानी की गाँठें खोलते हुए जैसे कोई तूफान एक गहरे
समुद्र की छिपी हुई गुफा का द्वार खोलने लगे, हमारे
बीच में कुछ अनकहा रह गया था, एक नयी क्रिया
अजीब संज्ञाओं को जोड़ते हुए होंठ मूँगे आँसुओं पर
तैरते हुए हमलों के शिथिल शब्दों के बीच और
भंगित हस्ताक्षरों के ज़ख्मों के साथ रह गये थे
सिर्फ परिक्रमा-पथ

सतीश वर्मा

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