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Friday, September 10, 2010

मोरचा

रात को गिरती हुई लाट और बुर्जें
एक डरावना मंजर पैदा करती हैं
एक एकान्तवासी तारा पूर्व की सुबह में निकलना शुरू कर देता है

एक सुअर का दिल आरोपण के लिये
तैयार किया जा रहा था एक आदमी के नपे
हुए अवतल स्थान के बराबर, अनूरुप

सत्रह साल की एक युवा लड़की
एक आतंकवादी से पूर्वनिश्चित कार्यक्रम के अनुसार
मिलने आयी है, गोलियों की बौछार निन्द्य अधोलोक की खातिर
छाती पर लेती है

विस्फोट के बाद हर आदमी गुस्से में था सिर्फ
दावेदारों के धूमपट के बीच में
सच्चाई के चेहरे पर पतली सी मुस्कान थी

हिँसा पर एक बहस शुरू होनी चाहिये
ताकि निर्वाण की वास्तविकता मालूम हो सके
भय का अन्त भय नहीं करेगा

सतीश वर्मा

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