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Sunday, September 12, 2010

अस्तित्व

एक शिशु मृत्यु के रहस्य की पर्ते
खोलता है, मधुमक्खी की चक्रीय लय को बदलता है
डेज़ी की घड़ी को, आँसुओं के पिंजड़े को
खोलता है

विषाणु की गन्ध कड़वी थी सल्फाइड से मिलती
जुलती सड़न पहिले तो ऐसा कभी नहीं होता था
वसन्त मजबूर था प्रिमरोज मधु का स्त्रवण
करना भूल गया था

पाषाण सब जगह थे बिस्तर पर, लिबासों पर
आँखों और टोपियों पर सफेद दीवारों पर
नीले ओंठों के चित्र मुस्करा रहे थे?

एक ठन्डा चान्द कुंडलित साँपों पर चल
रहा था दाहक उत्कन्ठा का जहर पीते हुए
टूटे हुए काँच पर धूसर लोग नाच रहे थे
थोड़ी देर में खून के पाँव यहाँ पडे़गे

सतीश वर्मा

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